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एक दिशा, एक एहसास, नयी शुरुआत और एक कोशिश...यहीं से शुरू है यह छोटा सा प्रयास...अपनी अनुभूतियों के निर्झर स्रोत को एक निश्चल और अंतहीन बहाव देने का...

My Poems and Songs

Friday, November 30, 2007

याद आते हैं वे खेत और खलिहान


याद आते हैं वे खेत और खलिहान

याद आते हैं वे खेत और खलिहान
लहलहाती सुनहरी बालियाँ मस्त पवन में
वह सरसराहट वह चहचहाहट दूर गगन में
मुस्कुराती सुनहरी धूप धरा के आँगन में।

याद आते हैं वे खेत और खलिहान
गेहूँ काटती बालाएँ चटकीले परिधानों में
गूँजती हँसी चहुँ ओर आसमानों में
बिखेरती रसीली फुहार मीठे गानों में।

याद आते हैं वे खेत और खलिहान
अठखेलियाँ बचपन की बौराए आमों में
अल्हड़ मस्ती झूमती बहती तरंगो में
कोयल की मीठी गूँज मस्त बयारों में।

याद आते हैं वे खेत और खलिहान
ढलती शाम लौटते पाखी नीड़ों में
जुगनुओं की चमक तारे परोसे थालों में
थकते कदम लौटें घरों के उजियारों में।

© अरविन्द

9 सितंबर 2007

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