यों मिली खुशी...
फूलों के रंग से, सौरभ और मकरंद से
पवन की तरंग से, समीर के स्पंद से
यों मिली खुशी,
वसुधा के इस विहंग से।
भँवरे की गुंजन से, तितली की उमंग से
पाखी के रंजन से, दिलों के मृदंग से
यों मिली खुशी,
वसुधा के इस संगम से।
मौसम के बसंत से, महुए की सुगंध से
पीत के अनंत से, बयार की गंध से
यों मिली खुशी,
वसुधा के इस आनंद से।
प्रेयसी की प्रीत से, मन के मीत से
वादी के संगीत से, कोयल के गीत से
यों मिली खुशी,
वसुधा की इस रीत से।
© अरविन्द
9 सितंबर 2007
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