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एक दिशा, एक एहसास, नयी शुरुआत और एक कोशिश...यहीं से शुरू है यह छोटा सा प्रयास...अपनी अनुभूतियों के निर्झर स्रोत को एक निश्चल और अंतहीन बहाव देने का...

My Poems and Songs

Friday, November 30, 2007

शाहजहाँ को फिर न लेना पड़े जन्म



शाहजहाँ को फिर न लेना पड़े जन्म

मेरे एक विदेशी मित्र ने कहा
अपने देश के किसी अजूबे के बारे मे बताओ
फिर क्या था हमने भी तपाक से
कर दी ईमेल ताजमहल की तस्वीर
और चाव लेकर बता डाला
उसका सारा इतिहास।

वापस जवाब आया
ताजमहल बहुत सुंदर लगा
और इतिहास भी बहुत है रोचक
संगमरमर की इस इमारत की कोइ साख नहीं
हमारा मन खुश हुआ
चलो उनको ताजमहल अच्छा लगा।

मगर उनकी अगली पंक्ति ने कर दिया स्तब्ध
मानो घड़ों पानी दिया उड़ेल
पूछा की ताजमहल तो ठीक है
मगर उसके पीछे काले पानी की
बहती धारा है क्या?
सफ़ेद इमारत और काले पानी का क्या है मेल?
आपकी राजनीति का क्या यह है खेल?

बात में दम था, दिमाग़ हमारा सन्न था
मन में ख़याल दौड़ गया
सशक्त राजनीतिज्ञों के अभाव में
शायद शाहजहाँ को फिर न लेना पड़े जन्म
इस बार ताज के लिए नहीं
बस सिर्फ़ इसलिए कि,
प्यारी यमुना फिर बहे सुंदर सहज।
प्यारी यमुना फिर बहे सुंदर सहज।
प्यारी यमुना फिर बहे सुंदर सहज।

© अरविन्द

9 जून 2007


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